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गुरु नानक राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै

गुरु नानक 
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा,
 जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
पूरा व्याख्या है

1 राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा,

उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारी हिंदी पाठपुस्तक गोधूलि भाग 2  काव्य पद खंड के राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा, पद से लिया गया हैं। जिनके  के रचयिता " गुरु नानक जी" हैं इस कविता में गुरु नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना जग में जन्म लेना बेकार है।
 जो व्यक्ति हरिनाम नहीं लेता है उसका किया भोजन विष के समान  हो जाता हैं।
 उसकी बोली विष के समान हो जाती है तथा जो ईश्वर का नाम नहीं लेता है उसका जीवन निष्फल तथा बुद्धि भ्रमित हो जाती है पुस्तक का पाठ करना, व्याकरण की व्याख्या करना संध्या - कर्म आदि सब निष्फल है।
वह गुरु उपदेश के अनुकरण किए बिना मुक्ति नहीं मिलती है तथा राम नाम के जप बिना प्राणी इस मोह युक्त संसार रूपी जाल में उलझ कर मर जाता है दंड- कमंडल धारण शिखा बढ़ना, जनेऊ पहनना, धोती पहनना या तीर्थ भ्रमण करना सब बेकार हो जाता है।
 यदि व्यक्ति नाम का जप नहीं करता है तो राम नाम के जप के बिना शांति नहीं मिल सकती है तथा जो हरि का नाम लेता है उसे बेरा पार हो जाता है जटा धारण, भस्म लगाना ,दिगंबर हो जाना सब बेकार है।
 गुरु नानक कहते हैं कि हरि नाम के बिना इस पृथ्वी पर जितने जीव -जंतु जल -थल में है ।
उन्हीं की कृपा से जीवित हैं जिससे गुरु उपदेश को ग्रहण कर लिया मानो वह हरि भक्तों का रस-पान कर लिया।

:- पद परिचय में कवि ने बताया है" राम" के नाम को जपने से ही जन्म सफल होता है ।
नाम के जप करने से ही मनुष्य सच्चे स्थाई शांति को प्राप्त कर दु: खमयी जीवन सागर से पार उतर सकता है।



 2 जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2  काव्य पद खंड के राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा, पद से लिया गया हैं। जिनके  के रचयिता " गुरु नानक जी" हैं इस कविता में गुरु नानक कहते हैं। जो मनुष्य अपने दुख से दु:खी नहीं होता है।
 सुख - स्नेह और भय भी जिसको प्रभावित नहीं कर सकता है ,
जो दूसरों के धन को माटी के समान समझता है।
 जिसे निंदा, प्रशंसा, लोभ, मोह और अभिमान प्रभावित नहीं कर सकता है।
 जिनको हर्ष  या शोक प्रभावित नहीं कर सकता है जो मान अपमान नहीं समझते हैं ,
जो मन से आशा, तृष्णा आदि सब कुछ त्याग देता है तथा जो सांसारिक माया से मुक्त रहता है।
 जिसको काम, क्रोध आदि स्पर्श भी नहीं करता है।
 ऐसे व्यक्ति के हृदय में ईश्वर का निवास है ।
जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा हो जाती है वही मनुष्य या व्यक्ति इस रहस्य को जान सकता है गुरु नानक कहते हैं कि ईश्वर भक्ति में इस प्रकार लीन हो जाओ जैसे नदी का पानी
समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है।

:- पद परिचय में कवि ने बताया है। द्वितीय पद के माध्यम से गुरु नानक जी ने मनुष्य के दु:ख सुख में एक समान रहने की बात कही है तथा अंतःकरण की शुद्धि पर बल दिया हैं।

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Vikram Kumar