शैशवावस्था बालक का निर्माण काल माना जाता है ,यह अवस्था जन्म से पांचवे वर्ष तक की मानी जाती है, इस अवस्था में बालक अरिपक्वता होता है! व दूसरे पर पूणतः निर्भर रहता है! उसका व्यवहार पूरी तरह प्रकृति से जुड़ा होता है जिसकी संतुष्टि वह तुरंत चाहता है, सुख की चाह उसका एक मात्र प्रेरक होता है।
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