यह पाठ एक निबंध है जो लेखक की पुस्तक (भारतीय लिपियों) की कहानी से लिया गया है जिसमें हिंदी की लिपि( देवनागरी) के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा स्पष्ट की गई है जिस लिपि में यह लेख छपा है उसे हम नागरी या देवनागरी कहते हैं करीब दो दशक पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बनी और इसमें पुस्तक छपने लगी इसलिए इनके अक्षरों में स्थिरता आ गई हिंदी तथा इन की विभिन्न बोलियां देवनागरी लिपि में लिखी जाती है नेपाल की नेपाली नेवाड़ी व मराठी भाषा भी इस लिपि में लिखी जाती है देवनागरी लिपि के बारे में एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि संसार में जहां भी संस्कृत- प्राकृत की पुस्तकें प्रकाशित होती है दरअसल नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं दक्षिण भारत की यह नागरी लिपि नंदी नगरी कहलाती थी नागरी नाम की उत्पत्ति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बड़ा मतभेद है एक मत के अनुसार गुजरात के नगर ब्राह्मण ने पहले पहल इस लिपि का इस्तेमाल किया इसका नाम नागरी परा इस मत को स्वीकार करने में अनेक बात है एक अन्य मत के अनुसार बाकी नगर सिर्फ़ नगर हैं परंतु कशी देवनगरी है इसीलिए काशी में प्रयुक्त लिपि का नाम देवनागरी गुप्त काल की ब्राह्मी लिपि तथा सिद्ध लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आरी लकीरें हैं लेकिन नागरी लिपी की पहचान यह है कि आठवीं नवी सदी से नागरी लिपि का प्रचलन सारे देश में था प्राचीन समय में काशी नगरी थी लंका के सिक्कों पर भी नगरी अक्षर मिलते हैं इसका प्रचलन 12 वीं सदी में पूरे देश में फैल चुका है कुछ इस्लामी शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी लेख अंकित किए हैं!